बलात्कारी कौन है ? क्या ये सवाल सही है या सवाल ये होना चाहिए के आखिर कोई व्यक्ति
बलात्कारी क्यों बना! कौन है उसके बलात्कारी बनने का जिम्मेदार ?
सवाल ये है के आखिर किसी बच्चे के मन में ऐसी सोच भरी भावनाए क्यों जन्म ले रही है ! ये बलात्कारी मन की भावनाए जन्म कहाँ से ले रही है. कहा जाता है के बच्चा वही सीखता है जो उसे सिखाया जाता है. और बड़े होने पर वैसे ही कुछ करता है जो अपने बचपन से जवानी तक सीखा और देखा !
हमारे स्कूलों में बच्चे आजकल मोबाइल से बढ़ते है और इंटरनेट है. ऐसे टेक्नोलॉजी जिससे बड़ी आसानी से बच्चो के मन और मस्तिष्क से आसानी खिलवाड़ किया जा सकता है बिना रोकटोक मानसिक विकार लाया जा सकता है.
हमारे समाज में अधिकतर लोग अश्लील सामग्रियों को देखने के लिए इंटरनेट और मोबाइल के इस्तेमाल को सही ठहराते है! ये जानते हुए की बच्चे और कुंठित बुद्धि के लोग भी आसानी से उस तक पहुंच सकते है. आजकल तो बच्चे अपने मन में आने वाले हर सवाल का जवाब ढूंढने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते है. बुद्धिजीवी वर्ग और आजादी के नाम पर लोग अपने स्वार्थ के कारण इस भीषण अश्लील सामग्री को बच्चो और दशदगर्द तक पंहुचा रहे है हमारे बच्चो को बीमार बना रहे है.
बॉलीवुड ( Bollywood) में काम करने वाले फ़िल्मी कलाकार भी दिल खोल के अंग प्रदर्शन करते है सिर्फ पैसो और अपने स्वार्थी मन के कारण, फिल्मो को देखने वाला अधिकतम युवा वर्ग है. परदे पर आने वाली फिल्मे अधिकतर अश्लील संवादों, चित्रो और इशारो से भरपूर होते है. जिन पर अगर सेंसर बोर्ड कैंची चलाता है तो उसे कोसने गलियो की बौछार करने में सदा सबसे आगे फिल्म बनाने वाले और उनके लोग होते है. जो पैसे और अपने ऊँचे कद की वजह से अपनी फिल्मो को पास करा लेते है. फिल्मो को अपनी आजादी के नाम पर सही ठहराने में सफल हो जाते है. सेक्स एक ऐसा विषय है जो किसी भी व्यक्ति के मन को आसानी से अपना शिकार बना लेता है और व्यक्ति को सभी कुछ सेक्स से परिपूर्ण और सही नजर आता है !
मनोरंजन के नाम पर फिल्मे अश्लील,अज्ञान, और सेक्स बाट रहे है! क्या बच्चो और कुंठित लोगो के साथ और ये उनके भविष्य से खिलवाड़ नहीं है. बच्चो को अश्लीलता का पाठ और रास्ता दिखती ये फिल्मे, हमारे बच्चो को अंतत: बलात्कारी तक बनाने की ताकत रखती !
स्कूलों में बच्चो को स्मार्टफ़ोन पकड़ा दिया जाता है. बच्चे उनका इस्तेमाल अश्लील फिल्मे, कामुक कहानी, और अश्लील चाट करने में ज्यादा इस्तेमाल करते है बजाय इसके के इसका इस्तेमाल पढाई में करे.whatsapp जैसे applications इसमें एक अहम भूमिका निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे जिनसे बच्चे आसानी से अश्लील सामग्री को शेयर करते है. जबकि बच्चो का काम एक साधारण फोन देने से चल सकता है. पढाई के लिए किताबो का अत्यधिक इस्तेमाल होना चाहिए. पढाई एक साधना है. ज्ञान को पाने के लिए पढाई की साधना करने पर बल देना चाहिए ना के technology के इस्तेमाल से उसकी पहुंच गलत सामग्री तक आसान बनाने से जो ज्यादातर सभी को आसानी से अपनी गिरफ्त में ल रही है. पानी को गन्दा करने के लिए गंदे पानी की एक बूँद ही काफी है. अच्छे और गंदे ज्ञान के समुद्र में मासूम बच्चो और युवाओ की तबाही को ही जन्म देगा.
आजकल लोग अश्लील लोगो के विचारो को सही मानने और बुद्धिजीवियों को नीरा मुर्ख समझने लगे है और आजादी के नाम पर अपनी फिल्मो को हिट करा रहे है. पैसो से सब ख़रीदा जा रहा है. मानव मानवता और ज्ञान सब पर ज्ञान और पैसा हावी है.
इन अश्लील फिल्मो के, संवाद, और चरित्र बच्चो और युवको के मन पे हावी हो रही है, sex बच्चो और युवाओ के दिमाग पर सबसे पहले हावी होता है जो सही और गलत का फर्क खत्म कर देता है. और सेक्स न मिलने पर उन्हें बलात्कार जैसा संगीन जुर्म करने पर विवश करता है. ये अश्लीलता सेक्स के लिए दिमाग को प्रेरित करता है और इसका अधिकतम आवेग एक बच्ची या बुरके में चलने वाली औरत को भी उसका शिकार बना देता है.
इसके जिम्मेदार ये नाजुक और कोमल मन को गलत काम करने के लिए प्रेरित करने वाले ये अश्लीलता परोसते फिल्मे, विज्ञापन, डायलाग, सीरियल अर्धनग्न शरीर की नुमाइश करने वाले लोगो की लम्बी फेहरिस्त है. इन्हे इनके जुर्म का आभास भी नहीं है. ये लोग बलात्कार होने पर शांति पूर्ण ढंग से कैंडल मार्च निकलते हुए बलात्कारी को सजा देने की मांगे करते है. अशलीलता जैसे भयानक अजगर को जो बलातकार करने पर मजबूर करता है उसे लोग आजादी के नाम आम बढ़ावा देते है.
स्कूलों में बच्चो को संस्कार के कोई भी विषय नहीं पढ़ाया जाता है, जो हमारी संस्कृति का मूल है! न ही उन्हें छोटो और बड़ो से अच्छा आचरण करना सिखाया जाता है और न ही अच्छे और बुरे ज्ञान में भेद करना बताया जाता है. चाँद स्कूली किताबो में लिखे हुए को बढ़ा कर शिक्षक और माता पिता अपनी ड्यूटी पूरी कर लेते है. बच्चे किताबो से कम फिल्मो से अधिक सीखते है. क्या हमारे बुद्धिजीवी वर्ग को और शिक्षा के वस्तार शिक्षा के नियम बनाने वाले लोगो, फिल्म निर्माताओ, और सरकारों में बैठे लोगो को ये समझ नहीं आता की बढ़ती अश्लीलता से बच्चो को क्या सीख और ज्ञान मिल रहा है! ये सब जानते है.
फिल्म के कहानी, संवाद, गीत, अभिव्यक्ति, सभी में अश्लीलता और सेक्स की भरमार हमारे बच्चो को बीमार और बीमार बना रही है ! बलात्कारी और जुर्म की तरफ धकेलने का काम ज्यादा कर रही है. फिल्म के निर्माता पैसो के लोभ में बलात्कारियो को जन्म देने का सबसे बड़ा काम करते है. और कहते है के लोग यही देखना चाहते है. ऐसा कहकर के निर्देशक सच्चाई अपनी जिम्मेदारियों से आजादी के नाम पर पीछा छुड़ा लेते है ! पिछले कुछ दशको से फूहड़ फिल्मे, अश्लील मज़ाक परोसने वाले सीरियलों न निर्माण बड़े स्तर पे करते रहते है. जो टीवी सिनेमा घरो तक अश्लील ज्ञान बाटते रहते है. जबकि सच ये है के है के अश्लील फिल्मो को विद्यार्थी, और कुंठित लोग ही अधिक देखते है. ये फिल्मे पारिवार के साथ देखने के लायक नहीं होती. जो फिल्मे साफसुथरी होती है उनमे भी एकाध दृश्य अश्लीलता के होते ही है जिसके आने पर दर्शक एक दूसरे के बंगले झाकने लगते है।
इंटरनेट पर ये फ़िल्मी कलाकार अर्धनग्न कपड़ो में भी अपनी तस्वीरें और वीडियो पोस्ट करते रहते है, यूट्यूब जैसे वीडियो साइट्स भी इन्हे फ़ैलाने में बड़ी भूमिका निभा रहे है. छोटे और निम्न स्तर के निर्माताओ को भी बहुत बड़ा दर्शक वर्ग इन वेबसाइट के जरिये आसानी से मिल जाता है अश्लील सामग्री से पैसा कमाने के लिए! अश्लील फ़िल्मी वीडियो भी आसानी से उपलब्ध होती है! फेसबुक, यूट्यूब, और दूसरी साइट्स चलाने वाली साइट भी इसमें पीछे नहीं जो इन अश्लील निर्माताओ और कलाकारों को नग्नता फ़ैलाने का पूरा मौका देते है. और सरकार इनपर प्रतिबन्ध लगाने के बजाय चुप्पी साढ़े बैठी पैसा कमाने में लगी है. सब नियम और कानून को तोड़ने में भी उच्च वर्ग पैसो के बल पर सबसे आगे है और अगर कोई कदम उठाया जाता है तो इस व्यवसायों से जुड़े लोग इसके विरुद्ध आ जाते है. ऐसा लगता है के फ़िल्मी उद्योग से जुड़े लोग ही पीछे से देश को चला रहे है, या फिर देश को चलाने वाले ही फ़िल्मी उद्योग चला रहे है.
लोगो की मानसिकता भी निम्न स्टार पर पहुंच गई है. जहा अपना पेट पालने के लिए औरत अगर डांस बार और वेश्या बनती है तो लोग उससे अपने बच्चो को और खुद दूर रहना पसंद करते है उनके बारे में सोचना और बात करने वालो को भी बुरा समझते है. वही अपने
आजादी, मजे और पैसे के लिए विदेशो में सैकड़ो मर्दो के साथ समय बिताने वाली विदेशी अश्लील फिल्मो (सनी लियोनी) की अभिनेत्री के साथ फिल्म में काम करना, साथ सेल्फ़ी लेने चाय पीने में लोग अपने आप को सभ्य और बड़ा समझते है. ऐसे लोग आने वाली पीढ़ी को खुलेपन नग्नता जैसे नामो से कोमल मन के बच्चो और युवाओ को गलत पर रस्ते पर धकेल कर अश्लीलता, और कामुकता के गलत कुतर्को से इन्हे सही और धार्मिक काम जैसा महत्व दे रहे है.
बलात्करिओ को जन्म देने का सबसे बड़ा श्रेय हमारे आधुनिक समाज के लोगो का है जो करोडो पैसा जिस्म की नुमाइश, अश्लीलता और कामुकता के फ़िल्मी रुपी विज्ञापन पे खर्च करके लोगो का ब्रेन वाश कर उन्हें बलात्कारी और अपराधी बना रहे है.
जबतक लोग, फिल्मे और अभिनेता इन फिल्मो को प्रोत्साहन देते रहेंगे इन्हे देखने जाते रहने और लोगो को समर्थन मिलता रहेगा बलात्कारी पैदा होते रहेंगे और करोडो निर्भया बसो, सड़को,गलियो, बंद कमरो में दबाई कुचली जाती रहेंगी, बलात्कार होते रहेंगे, ऐसे ही कैंडल मार्च होते रहेंगे. और मासूम बच्चे, युवा इनके भवर में फसकर बलात्कारी बनते रहेंगे.